बैसाखी पर्व पर श्रद्धालुओं ने गंगा में आस्था की डुबकी लगाई। सुबह से ही घाट और तटों पर भीड़ लगनी शुरू हो गई। देर शाम तक स्नान का सिलसिला चलता रहा। गंगा स्नान के बाद श्रद्धालुओं ने दीपदान किया। इसके बाद घाट और तटों पर बैठे साधु, फक्कड़ बाबा और जरूरतमंदों को अन्न, धन, वस्त्र आदि दिए। बैसाखी पर्व पर त्रिवेणीघाट, बहत्तर सीढ़ी गंगेश्वर घाट, साईं घाट, मुनिकीरेती स्थित पूर्णानंद घाट, तपोवन, लक्ष्मणझूला, स्वर्गाश्रम, श्यामपुर, हरिपुरकलां आदि गंगा घाटों पर श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी। भक्त गंगा में आस्था की डुबकी लगाकर पुण्य के भागी बने। घाटों पर विभिन्न संगठनों की ओर से प्रसाद वितरित किया गया। आचार्य सुमित गौड़ ने बताया कि बैसाखी रबी की फसल के पकने का समय होता है। जब गेहूं की फसल खेतों में सुनहरी होकर लहलहाने लगती है तो किसान अपनी मेहनत के फल को देखकर बेहद खुश होते हैं। इसी खुशी को मनाने के लिए वे बैसाखी का पर्व मनाते हैं। बैसाखी की कहानी, सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह के खालसा पंथ की स्थापना से जुड़ी है। बैसाखी को सिखों के नए साल की शुरुआत का दिन माना जाता है। इस दिन को मेष संक्रांति भी कहा जाता है। खालसा पंथ हमें धर्म, साहस और सेवा का मार्ग दिखाती है। यह पर्व सभी धर्मों, समुदायों और संस्कृतियों को जोड़ने का कार्य करता है। वहीं, तीर्थनगरी के लक्ष्मणझूला रोड स्थित हेमकुंट सहिब गुरुद्वारे में बैसाखी का पर्व धूमधाम से मनाया गया। सुबह से ही गुरुद्वारे में श्रद्धालुओं की भीड़ लगने लगी। सिख संगत ने गुरुवाणी का पाठ किया। शबद-कीर्तन करते हुए गुरुजी की महिमा गाई। पूरा गुरुद्वारा परिसर रंग-बिरंगी माला और झालरों से भव्य रूप से सजाया गया था।

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