काशी के रंगभरी एकादशी उत्सव में मिथिला संस्कृति के रंग भी नजर आएंगे। बाबा विश्वनाथ और माता गौरा भगवान श्रीराम की ससुराल में बना देवकिरीट धारण करके भक्तों को दर्शन देंगे। गौरा के गौने पर निकलने वाली पालकी यात्रा में भगवान शिव और मां पार्वती के सिर पर पहली बार मिथिला शैली का देवकिरीट सजाया जाएगा।
बाबा विश्वनाथ के गौने के लिए काशी में रहने वाले मिथिलावासियों ने इस देवकिरीट को मिथिला से खासतौर पर बनवाकर मंगाया है। पूर्व महंत डॉ. कुलपति तिवारी के पुत्र पंडित वाचस्पति तिवारी ने बताया कि बाबा विश्वनाथ और माता गौरा के गौना के समय पहली बार काशी में रहने वाले मिथिलावासियों ने देवकिरीट मंगवाया है। वे इसे शिव-पार्वती को धारण कराएंगे। मिथिलावासियों की संस्था मैथिल सेवा समिति की ओर से संस्था के अध्यक्ष कौशल किशोर मिश्र ने शिवांजलि के संयोजक संजीव रत्न मिश्र को बुधवार को इसे सौंपा।
पं. वाचस्पति ने बताया कि इस देवकिरीट को बनारसी जरी और सुनहरे लहरों से नारियल बाजार के व्यापारी नंदलाल अरोड़ा सजाएंगे। नंदलाल अरोड़ा का परिवार पिछली तीन पीढ़ियों से बाबा के मुकुट की साज-सज्जा करता आ रहा है। उल्लेखनीय है कि हर साल भगवान शिव और मां पार्वती को अलग-अलग तरह के मुकुट धारण कराए जाते हैं।
बीते कई साल से बाबा को विविध प्रकार के राजसी मुकुट व बंगीय शैली का देवकिरीट धारण कराया जाता रहा है। बाबा के सिर पर सुशोभित होने वाले ये मुकुट या पगड़ी प्राचीन भारत के अलग-अलग कालखंड में सनातनी शासकों द्वारा धारण किए जाने वाले मुकुट का प्रतिनिधित्व करते हैं।