हजारों नागा संन्यासियों ने शस्त्र प्रदर्शन किया। अखाड़े के दिव्य भाल सूर्य प्रकाश और भैरव प्रकाश को नागा संन्यासियों ने कंधों पर थामा। उनके पीछे ईष्ट देव भगवान कपिल की पालकी चली। आचार्य महामंडलेश्वर के पीछे नागा संन्यासी तलवार, गदा और त्रिशूल लहराते हुए बढ़े। दर्जनों महामंडलेश्वर भी शिष्यों के संग रथों पर सवार होकर निकले। अस्त्र-शस्त्र के साथ दौड़ लगाते नागाओं ने संगम में डुबकी लगाई। संगम घाट पर ही नागा संन्यासियों ने अजब-गजब करतब दिखाकर श्रद्धालुओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।

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श्री निरंजनी अखाड़ा व आनंद अखाड़ा भी पुलिस की सुरक्षा के बीच तय समय पर छावनी से निकले। अखाड़े की अगुवाई निरंजनी अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर कैलाशानंद गिरि और आनंद पीठाधीश्वर बालकानंद गिरि ने की। अखाड़े के साथ अखाड़ा परिषद अध्यक्ष एवं श्री महंत रवींद्र पुरी, सचिव महंत रामरतन गिरि, महामंडलेश्वर स्वामी प्रेमानंद पुरी, महामंडलेश्वर निरंजन ज्योति, श्री महंत शंकरानंद सरस्वती समेत सौ से अधिक महामंडलेश्वरों और श्री महंतों ने हजारों शिष्यों के साथ स्नान किया।

तीसरे क्रम में जूना अखाड़े के साथ आवाहन और अग्नि अखाड़ा के संन्यासी स्नान के लिए निकले। जूना अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर अवधेशानंद गिरि की अगुवाई में हर-हर महादेव के जयकारे लगाते हुए भारी संख्या में नागा जुलूस में शामिल हुए। पूरे शरीर पर भस्म रमाए नागा संन्यासी अलग कौतूहल पैदा कर रहे थे। पूरे अखाड़ा मार्ग पर करतब दिखाते नागा संन्यासी संगम तक पहुंचे। 

सुबह करीब नौ बजे तक सभी शैव अखाड़े छावनी में लौट गए
अखाड़ों के कोतवालों से इशारा मिलते ही नागा संन्यासियों ने हर-हर महादेव का उद्घोष करते हुए संगम की ओर दौड़ लगा दी। स्वामी अवधेशानंद ने षोडशोपचार पूजन किया। स्नान के पश्चात नागा संन्यासियों ने शरीर पर भस्म रमाई। पूरे रास्ते फूलों की बारिश होती रही। उधर, सुबह करीब नौ बजे तक सभी शैव अखाड़े छावनी में लौट गए। छावनी में लौटने के साथ ही संन्यासियों ने वापसी की तैयारी शुरू कर दी।

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