कोरोना महामारी को देखते हुए सरकार ने हरिद्वार में होने वाला कांवड़ रद्द कर दिया है। उत्तराखंड सरकार ने यूपी और हरियाणा के मुख्यमंत्रियों से बात करने के बाद ये फैसला लिया है। उत्तर भारत का सबसे बड़ा मेला रद्द हो जाने से हरिद्वार के व्यापारी मायूस हैं और सरकार से राहत की मांग कर रहे हैं।

हरिद्वार
धर्मनगरी हरिद्वार में इस साल बोल बम के जयकारे नहीं गूंजेंगे। सरकार ने कोरोना महामारी को देखते हुए इस बार कांवड़ यात्रा को रद्द कर दिया है। यात्रा के रद्द हो जाने से हरिद्वार में व्यापारियों को करोड़ों रुपए का झटका लगने का अनुमान है। ऐसे में निराश व्यापारी सरकार से राहत की मांग कर रहे हैं। उत्तर भारत के सबसे बड़े कावड़ यात्रा मेले को सरकार ने पड़ोसी राज्यों की सरकारों के साथ विचार विमर्श रद्द करने का फैसला लिया है।

दरअसल हरिद्वार में होने वाला कावड़ मेला अगले महीने 6 जुलाई से शुरू होने वाला था। लगभग 15 दिन चलने वाले इस कांवड़ मेले में हर साल करोड़ों की संख्या में शिव भक्त हरिद्वार पहुंचते हैं और गंगाजल भरकर अपने अपने गंतव्य की ओर जाते हैं। इस मेले से हरिद्वार के कई छोटे बड़े व्यापारियों का रोजगार जुड़ा हुआ है। यही कारण है कि कावड़ यात्रा के रद्द हो जाने से हरिद्वार के व्यापारी निराश हैं।

चार धाम यात्रा भी हुई रद्द
व्यापारियों का कहना है कि पिछले साल नवंबर महीने से कभी ट्रेनों का संचालन बंद होने से तो उसके बाद कोरोना महामारी फैल जाने के कारण हरिद्वार का व्यवसाय पूरी तरह से ठप पड़ा हुआ है। कोरोना महामारी के चलते सरकार ने चार धाम यात्रा को भी इस बार रद्द कर दिया है। चार धाम यात्रा के बाद अगले महीने शुरू होने वाली कांवड़ यात्रा से काफी उम्मीदें थी। अब उसको भी रद्द कर दिया गया है।

सरकार निकाले बीच का रास्ता
हरिद्वार व्यापार मंडल के महामंत्री और संजीव नैय्यर ने कहा कि सरकार को व्यवस्था बनाकर कोई बीच का मार्ग निकालना चाहिए। जिससे यह पारंपरिक मेला भी संपन्न हो सके और उसके अलावा मेले से जुड़ी हजारों लाखों लोगों की रोजी-रोटी पर संकट भी ना आए। वहीं होटल एसोसिएशन के अध्यक्ष आशुतोष शर्मा का कहना है कि कांवड़ यात्रा से हरिद्वार के व्यापारियों को काफी उम्मीदें थीं। पिछले लगभग 8 महीने से सभी धार्मिक गतिविधियों के थम जाने से व्यापार और पर्यटन क्षेत्र से जुड़े लोगों के सामने आर्थिक संकट आ खड़ा हुआ है। सरकार को मेले का पारंपरिक स्वरूप बनाये रखने और व्यापारियों की आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखकर एक बार फिर विचार करना चाहिए।

‘जान है तो जहान है’
पूरे मामले पर सफ़ाई देते हुए सरकारी प्रवक्ता और कैबिनेट मंत्री मदन कौशिक ने बताया कि सरकार ने मेले को पारंपरिक स्वरूप में संपन्न ना कराए जाने का निर्णय लिया है। इस मेले में करोड़ों की संख्या में यात्री आते हैं, ऐसे में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कराना मुश्किल होगा। इसलिए जान है तो जहान है की धारणा को सर्वोपरि मानते हुए मेले के स्वरूप में परिवर्तन किया गया है। अन्य राज्यों की सरकारों से वार्ता कर कहा गया है कि उनके यहां हरिद्वार से गंगाजल भरकर ले जाने वाली समितियों के कुछ सदस्य हरिद्वार से गंगाजल भरकर ले जा सकते हैं।

मेले से जुड़ा है हजारों लोगों का रोजगार
हर साल होने वाली कांवड़ यात्रा और इसके मेले से धर्मनगरी हरिद्वार के हजारों लोगों का रोजगार जुड़ा है। इस मेले में प्रमुख रूप से यूपी, दिल्ली और हरियाणा के शिवभक्त करोडों की संख्या में हरिद्वार पहुंचते हैं। लगभग 15 दिनों तक चलने वाले मेले कई स्थानीय लोगों मे कांवड़ बनाने वाले कारीगर, गंगाजली बेचने वाले, जलपान की दुकान लगाने वाले और फूल प्रसाद बेचने वाले आदि लोगों का रोजगार प्रभावित हुआ है।

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