कांग्रेस ने सिख प्रचारक जरनैल सिंह भिंडरावाले को परोक्ष रूप से प्रोत्साहन दिया
इस बीच अकाली कार्यकर्ताओं और निरंकारियों के बीच अमृतसर में 13 अप्रैल 1978 को हिंसक झड़प हुई। इस घटना को पंजाब में चरमपंथ की शुरुआत के तौर पर देखा गया। विश्लेषक मानते हैं कि शुरुआत में सिखों पर अकाली दल के प्रभाव को कम करने के लिए कांग्रेस ने सिख प्रचारक जरनैल सिंह भिंडरावाले को परोक्ष रूप से प्रोत्साहन दिया। इसके पीछे कांग्रेस का मकसद था कि अकालियों के सामने किसी संगठन या ऐसे व्यक्ति को खड़ा किया जाए, जो उनको मिलने वाले समर्थन में सेंध लगा सके।अकाली दल भारत की राजनीतिक मुख्यधारा में रहकर पंजाब और सिखों की मांगों की बात कर रहा था, लेकिन उसका रवैया ढुलमुल माना जाता था। उधर, इन्हीं मुद्दों पर जरनैल सिंह भिंडरावाले ने कड़ा रुख अपनाते हुए केंद्र सरकार को दोषी ठहराना शुरू कर दिया। वे विवादास्पद राजनीतिक मुद्दों, धर्म और उसकी मर्यादा पर नियमित तौर पर भाषण देने लगे। बहुत से लोग उनके भाषणों को भड़काऊ मानते थे। वहीं कुछ लोगों का कहना था कि वे सिखों की जायज मांगों और धार्मिक मसलों की बात कर रहे हैं।
1981 में हिंद समाचार-पंजाब केसरी अखबार समूह के संपादक की हत्या
उधर, पंजाब में हिंसक घटनाएं बढ़ने लगी थीं। सितंबर 1981 में हिंद समाचार-पंजाब केसरी अखबार समूह के संपादक लाला जगत नारायण की हत्या हुई। जालंधर, तरनतारन, अमृतसर, फरीदकोट और गुरदासपुर में हिंसक घटनाएं हुईं और कई लोगों की जान गई। भिंडरावाले पर हिंसक गतिविधियों को बढ़ावा देने के आरोप लगने लगे, लेकिन कांग्रेस सरकार के वरिष्ठ प्रतिनिधियों ने कम से कम दो बार इन घटनाओं में उनका हाथ न होने की बात कही।
1981 में भिंडरावाले ने महता चौक गुरुद्वारे के सामने दी गिरफ्तारी
कांग्रेस पर लगातार ये आरोप लगते रहे कि उसकी केंद्र और राज्य सरकारों ने भिंडरावाले के खिलाफ कार्रवाई करना तो दूर उन्हें रोकने की कोई कोशिश तक नहीं की। सितंबर 1981 में ही भिंडरावाले ने महता चौक गुरुद्वारे के सामने गिरफ्तारी दी, लेकिन वहां एकत्र भीड़ और पुलिस के बीच गोलीबारी हुई। इस गोलीबारी में ग्यारह व्यक्तियों की मौत हो गई और इसके साथ ही पंजाब में हिंसा का दौर शुरू हो गया। लोगों को भिंडरावाले के साथ जुड़ता देख अकाली दल के नेताओं ने भी भिंडरावाले के समर्थन में बयान देने शुरू कर दिए।
अक्तूबर 1981 में भिंडरावाले को रिहा कर दिया गया। 1982 में वे चौक महता गुरुद्वारा छोड़ पहले स्वर्ण मंदिर परिसर में गुरु नानक निवास और इसके बाद सिखों की सर्वोच्च धार्मिक संस्था अकाल तख्त से अपने विचार व्यक्त करने लगे। अकाली दल ने सतलुज-यमुना लिंक नहर बनाने के खिलाफ जुलाई 1982 में अपना ‘नहर रोको मोर्चा’ छेड़ रखा था, जिसके तहत अकाली कार्यकर्ता लगातार गिरफ्तारियां दे रहे थे। लेकिन स्वर्ण मंदिर परिसर से भिंडरावाले ने अपने साथी ऑल इंडिया सिख स्टूडेंट्स फेडरेशन के प्रमुख अमरीक सिंह की रिहाई को लेकर अभियान शुरू कर दिया।
पंजाब पुलिस के उपमहानिरीक्षक स्वर्ण मंदिर परिसर में गोली मारकर हत्या
अकालियों ने भी अपने मोर्चे का विलय भिंडरावाले के मोर्चे में कर दिया और धर्म युद्ध मोर्चे के तहत गिरफ्तारियां देने लगे। उन्होंने भिंडरावाले की मांगें भी अपना लीं। उधर, पंजाब में हिंसक घटनाएं लगातार बढ़ती चली गईं। पटियाला के पुलिस उपमहानिरीक्षक के दफ्तर में भी बम विस्फोट हुआ। प्रदेश में उस समय के मुख्यमंत्री दरबारा सिंह पर हमला हुआ। फिर अप्रैल 1983 में एक अभूतपूर्व घटना घटी। पंजाब पुलिस के उपमहानिरीक्षक एएस अटवाल की दिन दहाड़े स्वर्ण मंदिर परिसर में गोली मारकर तब हत्या कर दी गई, जब वे वहां माथा टेक कर बाहर निकल रहे थे।
मामले की जांच करते हुए पुलिस महानिदेशक केपीएस गिल ने पाया कि उस समय घटनास्थल के आसपास लगभग सौ पुलिसकर्मी थे और उनमें से आधे हथियारों से लैस थे, लेकिन अटवाल का शव इस घटना के करीब दो घंटे बाद तक वहीं पड़ा रहा। कुछ ही महीने बाद पंजाब रोडवेज की बस में घुसे बंदूकधारियों ने कई हिन्दुओं की हत्या कर दी थी। माहौल बिगड़ता देखकर इंदिरा गांधी सरकार ने पंजाब में दरबारा सिंह की कांग्रेस सरकार को बर्खास्त कर दिया और राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया।
फरवरी 1984 में हरियाणा में सिखों के खिलाफ हिंसा
इसके बाद पंजाब में स्थिति बिगड़ती चली गई और 1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार से तीन महीने पहले हिंसक घटनाओं में मरने वालों की संख्या 298 हो गई थी। अकाली राजनीति के जानकारों के अनुसार, ऑपरेशन ब्लू स्टार से पहले इंदिरा गांधी सरकार की अकाली नेताओं के साथ तीन बार बातचीत हुई। आखिरी चरण की बातचीत फरवरी 1984 में तब टूट गई, जब हरियाणा में सिखों के खिलाफ हिंसा हुई।
एक जून को भी स्वर्ण मंदिर परिसर और उसके बाहर तैनात पुलिसकर्मियों के बीच गोलीबारी हुई। दो जून से परिसर में हजारों श्रद्धालुओं ने जुटना शुरू कर दिया था, क्योंकि गुरुपर्व शुरू होने वाला था। जब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश को संबोधित किया तो ये स्पष्ट हो गया कि स्थिति इतनी गंभीर हो चुकी है कि भारत सरकार कोई कार्रवाई कर सकती है। पंजाब से आने-जाने वाली रेलगाड़ियों और बस सेवाओं पर रोक लग गई, फोन कनेक्शन काट दिए गए और विदेशी मीडिया को राज्य से बाहर कर दिया गया।
तीन जून तक भारतीय सेना अमृतसर में प्रवेश करके स्वर्ण मंदिर परिसर को घेर चुकी थी। चार जून को सेना ने गोलीबारी शुरू कर दी, लेकिन चरमपंथियों की ओर से इतना तीखा जवाब मिला कि पांच जून को बख्तरबंद गाड़ियों और टैंकों का इस्तेमाल किया गया। भीषण खून-खराबा हुआ, अकाल तख्त पूरी तरह तबाह हो गया। स्वर्ण मंदिर पर गोलियां दागी गईं और ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण पुस्तकालय बुरी तरह जल गया। भारत सरकार के श्वेतपत्र के अनुसार 83 सैनिक मारे गए और 249 घायल हुए।
इसी श्वेतपत्र के अनुसार 493 चरमपंथी या आम नागरिक मारे गए, 86 घायल हुए और 1592 को गिरफ्तार किया गया। लेकिन इन सब आंकड़ों को लेकर अब तक विवाद चल रहा है। सिख संगठनों का कहना है कि स्वर्ण मंदिर में मरने वाले निर्दोष लोगों की संख्या भी हजारों में है। वहीं इस कार्रवाई से सिख समुदाय को बहुत ठेस पहुंची। कई प्रमुख सिख बुद्धिजीवियों ने सवाल उठाए कि स्थिति को इतना खराब क्यों होने दिया गया कि ऐसी कार्रवाई करने की जरूरत पड़ी।
ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद सिखों और कांग्रेस पार्टी के बीच दरार पैदा हो गई, जो उस समय और गहरा गई जब दो सिख सुरक्षाकर्मियों ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या कर दी। इसके बाद कांग्रेस और सिखों की बीच की खाई और चौड़ी हो गई। नतीजा, ऑपरेशन को 39 साल बीत जाने के बाद भी जख्म भरे नहीं हैं। आज भी बरसी के दिन स्वर्ण मंदिर में तलवारें लहराई जाती हैं। खालिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाए जाते हैं। टकराव की स्थिति आज भी बरकरार है और तनावपूर्ण माहौल बना रहता है।