पूरे चुनाव में पार्टी एक बार फिर एकजुट नजर नहीं आई। पार्टी सूत्रों के मुताबिक, उपचुनाव में जमकर भीतरघात हुआ है। प्रदेश अध्यक्ष ने ऐसी संभावनाओं पर चिंता जताते हुए आंतरिक जांच कराए जाने की बात कही है।
चंपावत उप चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी को चार हजार से भी कम वोट मिले हैं, जबकि इसी सीट पर इस वर्ष हुए विधानसभा चुनाव में उसे 27 हजार से अधिक मत मिले थे। तब जीत हार का अंतर ही पांच हजार के आसपास था। अब पार्टी के लिए यह मंथन का विषय है कि तीन माह में ही ऐसा क्या हुआ कि उसका मत प्रतिशत एकदम से फर्श पर आ गया।
विधानसभा चुनाव में कुमाऊं से पार्टी की झोली में 11 सीटें आईं थीं। इस चुनाव में कांग्रेस नेताओं की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं। खासकर कुमाऊं से जीते विधायक निशाने पर हैं। इनमें से धारचूला विधायक हरीश धामी पहले ही मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के लिए सीट छोड़ने का एलान कर चुके थे। चुनाव प्रबंधन के लिए बनाई गई कमेटी में विधायक मनोज तिवारी, भुवन कापड़ी और खुशहाल सिंह अधिकारी को रखा गया था। इस कमेटी ने कैसा प्रबंधन किया, इसको लेकर भी चर्चाएं हैं।
इधर, विधानसभा चुनाव में पार्टी प्रत्याशी रहे हिमेश खर्खवाल को मुख्य चुनाव संयोजक बनाया गया था। अपने चुनाव में 27 हजार से अधिक वोट लाने वाले खर्खवाल भी इस चुनाव में कुछ कमाल नहीं दिखा पाए। पार्टी सूत्रों के अनुसार, खर्खवाल की भूमिका इस चुनाव में नगण्य रही। वहीं अल्मोड़ा संसदीय सीट से पांच विधायक मनोज तिवारी, मदन बिष्ट मयूख महर, खुशहाल सिंह अधिकारी, हरीश धामी की भूमिका को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं।
हालांकि, प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा, पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत, नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य और सांसद प्रदीप टम्टा मोर्चे पर डटे नजर आए लेकिन पार्टी प्रत्याशी को अपने कद के अनुसार वोट नहीं दिलवा पाए।