महाकुंभ मेले में आए साधु-संत और नागा बाबा अपनी-अपनी परंपरा के अनुसार तपस्या में लीन हैं। गंगा किनारे चिलचिलाती धूप में नागा बाबा गर्म रेत पर अग्नि के घेरे में बैठकर तपस्या में लीन हैं। नागा बाबाओं का कहना है कि वह अपने गुरुओं की परंपराओं को आगे बढ़ा रहे हैं। 12 साल की तपस्या में लीन पांच नागा बाबा अलग-अलग मौसम में रहकर तपस्या कर रहे हैं। गर्मी में गर्म रेत पर बैठकर चारों तरफ अग्नि का घेरा बनाकर, सर्दी में पानी में खड़े होकर और बरसात में पेड़ के नीचे बैठकर यह साधु तपस्या करते हैं। तपस्या कर रहे बाबा रविंद्र गिरि ने बताया कि उनका आश्रम मरौली गांव राजस्थान में हैं। उन्होंने बताया कि अलग-अलग नियमों के अनुसार तपस्या की जाती है। वह अपने गुरु महाराज की आज्ञा से 12 साल की तपस्या में जुटे हैं। यह शिवरात्रि के दिन शुरू होती है और ज्येष्ठ माह में आने वाले दशहरे पर गुरू की आज्ञा से समाप्त होती है। तपस्या का समापन गुरु महाराज कहीं भी करा सकते हैं। चाहे गंगा के किनारे हो या यमुना के किनारे। इस समय उनकी तपस्या बैरागी कैंप में गंगा के किनारे चल रही है। यहां पर वह अग्नि का घेरा बनाकर गर्म रेत पर बैठकर सफेद चादर ओढ़कर तपस्या में लीन है।रविंद्र गिरि ने बताया कि वर्ष 2012 में उन्होंने यह तपस्या शुरू की जो अब 2023 में पूर्ण होगी। वहीं महाकुंभ स्नान के लिए हरिद्वार पहुंचे हठयोगी संत घनश्याम गिरि और महंत राधेपुरी श्रद्धालुओं के लिए कौतुक बने हैं।