जिला न्यायालय ने मारपीट, लूटपाट के 15 साल पुराने मुकदमे में स्वामी वासुदेवानंद को अभियोजन द्वारा वाद वापस लिए जाने के आधार पर बरी कर दिया है। प्रदेश सरकार द्वारा स्वामी वासुदेवानंद और दो अन्य पर से मुकदमा वापस लेने का निर्णय लेने के बाद अभियोजन ने न्यायालय में प्रार्थनापत्र प्रस्तुत कर मुकदमा समाप्त करने का अनुरोध किया था। न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम पल्लवी सिंह ने वादी पक्ष से आपत्ति लेने के बाद दोनों पक्षों को सुनकर वाद वापसी का प्रार्थनापत्र को स्वीकार कर लिया।घटना आठ फरवरी 2005 की है। शंकराचार्य स्वरूपानंद के विधिक पैरोकार राजेंद्र प्रसाद मिश्र ने झूंसी थाने में वासुदेवानंद, आत्मानंद और छोटे लाल मिश्रा के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया था कि वासुदेवानंद के ललकारने पर उन्होंने अनिल पटौदिया, गिरीश तिवारी और ब्रह्म विज्ञानानंद को मारपीट कर गंभीर चोटे पहुंचाई और उनका वीडिया कैमरा व मोबाइल फोन आदि छीन लिया। सहायकअभियोजन अधिकारी अनुज कुमार निगम ने कोर्ट में अर्जी दाखिल कर कहा कि प्रदेश सरकार ने उक्त मुकदमा वापस लेने का निर्णय लिया है। सरकार के निर्णय के बारे में जिलाधिकारी ने कोर्ट में अर्जी प्रस्तुत करने केलिए आदेशित है।

कोर्ट ने इस पर वादी मुकदमा राजेंद्र प्रसाद मिश्र से आपत्ति मांगी थी। उन्होंने वाद वापसी पर आपत्ति करते हुए कहा कि वासुदेवानंद को सिविल कोर्ट ने निषेधाज्ञा जारी शंकराचार्य ज्योतिष्पीठ के पद पर कार्य करने और छत्र, दंड व पदवी धारण करने से अस्थाई रूप से रोक दिया था। इसके बावजूद वह अदालत के आदेश का उल्घंन करते रहे।

इसका साक्ष्य एकत्रित करने केलिए जब शंकराचार्य स्वरूपानंद के शिष्य उनकी सभा में वीडियोग्राफी कर रहे थे उनको मारापीटा गया। जबकि अभियोजन का कहना था कि मुकदमा 15 वर्षों से लंबित है। इसमें आजतक आरोप भी तय नहीं हुआ है। स्वामी वासुदेवानंद धर्मगुरु हैं और सनातन धर्म में अस्था रखने वाले लोगों के बीच उनकी मान्यता है। मुकदमा समाप्त करना लोकहित में उचित कदम है। कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद वाद वापसी की अर्जी को स्वीकार कर मुकदमा समाप्त कर दिया है।

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