गढ़वाल और कुमाऊं के बीच उत्तर प्रदेश की सड़क की बाध्यता अब खत्म होने जा रही है। उत्तराखंड के बहुचर्चित कंडी मार्ग की सभी रुकावटें दूर हो गई हैं। आखिरकार राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड(एनबीडब्ल्यूएल) ने उत्तराखंड के प्रस्ताव को पास कर दिया। जल्द ही उत्तराखंड सरकार की शर्तों के मुताबिक कंडी मार्ग का निर्माण शुरू होगा।
गढ़वाल और कुमाऊं मंडलों को राज्य के भीतर ही सीधे आपस में जोड़ने वाली लैंसडोन वन प्रभाग के अंतर्गत कंडी रोड (रामनगर-कालागढ़-चिलरखाल-लालढांग) के चिल्लरखाल-लालढांग हिस्से के निर्माण को लेकर राज्य और केंद्र सरकार के बीच लंबे समय से खींचतान चल रही थी। पूर्व में राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड प्रस्ताव को अस्वीकार कर चुका था लेकिन राज्य वन्यजीव बोर्ड ने दोबारा प्रस्ताव पास कर राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड को भेजा था।
शुक्रवार को राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड की बैठक केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावडेकर की अध्यक्षता में हुई, जिसमें राज्य के वन मंत्री डॉ. हरक सिंह रावत भी शामिल हुए। उन्होंने कंडी मार्ग के प्रस्ताव को बोर्ड में रखा, जिसे बोर्ड ने पास कर दिया। इस बहुप्रतीक्षित प्रोजेक्ट के लिए राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी और मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने भी केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावडेकर से बात की।
कहां फंसा था पेच
दरअसल, कंडी मार्ग को राष्ट्रीय बोर्ड ने 56वीं बैठक में अनुमति दी थी लेकिन इसमें दो शर्तें रखी थी। एक शर्त यह थी कि 710 मीटर की एलिवेटेड रोड होगी, जिसकी ऊंचाई आठ मीटर होनी चाहिए। इस पर राज्य सरकार सहमत नहीं थी। राज्य सरकार का तर्क था कि चूंकि यह राष्ट्रीय राजमार्ग नहीं है तो यहां एनएच की गाइडलाइंस क्यों थोपी जा रही हैं। लिहाजा, राज्य सरकार लगातार इस बात पर जोर दे रही थी कि ऊंचाई छह मीटर हो और एलिवेटेड रोड की लंबाई 470 मीटर ही हो। शुक्रवार को आखिरकार इस प्रस्ताव को राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड ने पास कर दिया। अब कंडी मार्ग के रास्ते की सभी रुकावटें दूर हो गईं।
यूपी जाने के झंझट से मिलेगी निजात
कोरोनाकाल में इस सड़क का महत्व अधिक बढ़ गया है। यह मार्ग पौड़ी जिले के कोटद्वार समत अन्य स्थानों से मरीजों को चिकित्सा सुविधा के लिए ऋषिकेश व देहरादून आने-जाने के लिए सबसे सुगम है। इसके निर्माण से जहां उत्तर प्रदेश से होकर आने-जाने के झंझट से निजात मिलेगी, वहीं धन व समय की बचत भी होगी।