कोटद्वार भाबर के 73 गांव निगम में शामिल होने से पहले दुगड्डा ब्लाक के ग्रामीण अंचल में आते थे। तब नाबार्ड समेत कई योजनाओं से ग्रामीण क्षेत्र की योजनाओं के लिए धनावंटन हो जाता था, लेकिन निगम बनने के बाद यह पूरा क्षेत्र शहरी विकास के अंतर्गत आ गया, जिससे ग्रामीण क्षेत्र की योजनाएं यहां लागू नहीं होतीं। इसका सबसे बड़ा खामियाजा काश्तकारों को उठाना पड़ रहा है। शहरी क्षेत्र के अलावा भाबर के गांवों में आज भी खेती होती है। मालिनी किसान पंचायत और अखिल भारतीय किसान सभा के संरक्षक ज्ञान सिंह नेगी, मधुसूदन नेगी, जेपी बहुखंडी का कहना है कि निगम बनने के बाद से काश्तकार परेशान हैं। गांवों की सिंचाई नहरें व गूलें वर्ष 2017 व इसके बाद आई आपदाओं से ध्वस्त पड़ी हैं। थोड़ी बहुत सफाई और मरम्मत ग्रामीणों ने अपने स्तर पर कर कामचलाऊ व्यवस्था बनाने का प्रयास किया, लेकिन मुख्य नहरें जस की तस पड़ी हैं। मानसून सत्र शुरू हो चुका है। धान की रोपाई सिर पर है, लेकिन नहरों की हालत देखकर काश्तकार मायूस हैं। वे नगर निगम से लेकर विधायक, मंत्री और मुख्यमंत्री तक गुहार लगा चुके हैं। विधानसभा चुनाव से पहले की रैली में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने काश्तकारों को आश्वासन दिया था कि नहरों और गूलों की मरम्मत व नवनिर्माण के लिए धनराशि आवंटित की जाएगी, लेकिन वह भी दूर की कौड़ी बनी हुई है।
काश्तकार बीरेंद्र प्रसाद, दाताराम केष्टवाल, गोविंद मेहरा, सुरेंद्र मेहरा, कुबेर जलाल का कहना है कि सिंचाई के अभाव में धान की रोपाई करना चुनौती बना हुआ है। सिंचाई विभाग से कई बार सिंचाई गूलों और नहरों की मरम्मत कराने की मांग की गई, लेकिन वह बजट का अभाव बताकर वे पल्ला झाड़ देते हैं।
झंडीचौड़ पश्चिमी के पार्षद सुखपाल शाह, त्रिलोकपुर के पार्षद राकेश बिष्ट, अमित नेगी और जगदीश मेहरा का कहना है कि किसान कर्ज लेकर फसलों की बुवाई करते हैं, लेकिन सिंचाई के अभाव में उन्हें आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है।
नगर निगम के सभी 40 वार्डों में नहरों और सिंचाई गूलों की मरम्मत व निर्माण के लिए प्रस्ताव तैयार कर भेजे गए हैं। स्वीकृति मिलते ही धरातल पर काम शुरू कर दिया जाएगा। – विनोद कुमार, एसडीओ, सिंचाई खंड दुगड्डा।