अर्थव्यवस्था में सुधार के लिए अब सरकार के पास अपने आर्थिक संसाधनों में बढ़ोतरी करने के सिवाय कोई विकल्प नहीं रह गया है। फिलहाल सरकार के पास अपनी जरूरतों को पूरा करे के लिए केंद्र सरकार का दरवाजे पर फरियाद लगाने के सिवाय दूसरा विकल्प नहीं हैं।

सीएम पुष्कर सिंह धामी

देहरादून और हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में मुख्य सचिवों की कांफ्रेंस में कई राज्यों की डगमगाती अर्थव्यवस्था ने हुक्मरानों और नीति नियंताओं को गंभीर चिंतन करने पर मजबूर कर दिया है। सीमित संसाधनों वाले उत्तराखंड राज्य की वित्तीय सेहत के भी बहुत सुखद हालात नहीं हैं।

झारखंड और छत्तीसगढ़ राज्य के साथ अस्तित्व में आए उत्तराखंड सरकार के कदम पिछले दो दशकों में लिए गए भारी भरकम कर्ज से लड़खड़ा रहे हैं। यदि कर्ज को औसतन प्रतिव्यक्ति के हिसाब से आंके तो उत्तराखंड पर झारखंड और छत्तीसगढ़ से दोगुने से अधिक कर्ज चढ़ा है। इस बोझ को उतारने और उसका ब्याज चुकाने के लिए प्रदेश सरकार को अपनी क्षमताओं से बढ़कर प्रदर्शन करना होगा।
वित्तीय मामलों के जानकारों के मुताबिक, अर्थव्यवस्था में सुधार के लिए अब सरकार के पास अपने आर्थिक संसाधनों में बढ़ोतरी करने के सिवाय कोई विकल्प नहीं रह गया है। फिलहाल सरकार के पास अपनी जरूरतों को पूरा करे के लिए केंद्र सरकार का दरवाजे पर फरियाद लगाने के सिवाय दूसरा विकल्प नहीं हैं।

धर्मशाला पिछले दिनों हुई मुख्य सचिवों की कांफ्रेंस में राज्यों के वित्तीय स्थिति की जो तस्वीर बयान की गई है, उसमें उत्तराखंड के लिए प्रतिबद्ध खर्च सबसे बड़ी चुनौती है। केंद्र सरकार के वित्तीय मामलों के विशेषज्ञों ने राज्यों की माली हालत के बारे में जो आंकड़े दिए, वे वास्तव में चौंकाने के साथ चिंता में डालने वाले हैं।

वेतन-पेंशन पर सर्वाधिक खर्च में तीसरा राज्य

उत्तराखंड सबसे अधिक प्रतिबद्ध खर्च के मामले में पंजाब और केरल के बाद देश का तीसरा राज्य है। आंकड़ों के मुताबिक, 2017-18 से 2019-20 के दौरान तीन वित्तीय वर्षों में उत्तराखंड राज्य की कुल कमाई में से 75 प्रतिशत धनराशि वेतन, पेंशन, मजदूरी और कर्ज का ब्याज चुकाने पर खर्च हुए। अभी भी यही स्थिति बनी हुई है।

उत्तराखंड पर औसतन प्रतिव्यक्ति 65 हजार का कर्ज

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के आंकड़े के मुताबिक, 2021 तक उत्तराखंड पर 75,351 करोड़ रुपये ऋण का संशोधित अनुमान है। इस अवधि में उत्तराखंड के साथ बनें छत्तीसगढ़ और झारखंड पर एक लाख करोड़ से अधिक का कर्ज है। कुल आबादी और बजट आकार की तुलना में यह उत्तराखंड से कम है।

तीन राज्यों पर औसतन प्रतिव्यक्ति ऋण का ब्योरा

राज्य    ऋण    कमिटेड खर्च    आबादी    प्रतिव्यक्ति कर्ज 
उत्तराखंड    75,351    78    1.15    65,522
छत्तीसगढ़    1,00150    42    2.98    33,607
झारखंड    1,05570    41    3.98    27069
स्रोत: आरबीआई (कर्ज की कुल देनदारी 2021 तक के संशोधित अनुमान )

नोट: (आबादी और ऋण करोड़ में और कुल आय में से प्रतिबद्ध खर्च प्रतिशत में)
(जनसंख्या : यूआईएआई और जनगणना की प्रोजेक्शन रिपोर्ट )

सरकार पर संसाधन जुटाने का दबाव

राज्य की माली हालत को देखते हुए सरकार पर वित्तीय संसाधन जुटाने का भारी दबाव है। सरकार अपनी आय का कोई स्रोत हाथों से गंवाना नहीं चाहती है। यही वजह है कि नई दिल्ली के दौरे पर गए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने बृहस्पतिवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से जीएसटी प्रतिपूर्ति जारी रखने के साथ टीएचडीसी इंडिया में उत्तराखंड की 25 प्रतिशत हिस्सेदारी का मुद्दा जोरदार ढंग से उठाया।
उत्तराखंड सरकार ने तय सीमा के भीतर ही ऋण लिए हैं। सभी राज्य ऋण लेते हैं। लेकिन यह बात सही है कि हमें अपने वित्तीय संसाधनों को बढ़ाना होगा। पर्यावरणीय मानकों का पालन करते हुए हम अपनी प्रस्तावित पन बिजली परियोजनाओं फोकस करेंगे। विसंगतियों को दूर करेंगे ताकि राजस्व में वृद्धि हो।
– आनंद बर्द्धन, अपर मुख्य सचिव(वित्त), उत्तराखंड सरकार

By Tarun

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