साधु संतों और पंडों की नगरी की कथाएं और राग रंग भी हैं। नागा संन्यासियों के अखाड़ों का तो भांग, गांजे और चिल्मों से रिश्ता बड़ा पुराना है। साधु बाबाओं के अखाड़े, मठ और आश्रम और महंतों की बड़ी पुरानी हवेलियां भी हैं। इन हवेलियों में पुराने जमाने से वर्ष भर ठंडाई छनती आ रही है। मौका कुंभ मेले पर पड़ने वाली होली का हो तो फिर रंग ही निराले हैं। कुंभ के उल्लास में नागाओं की भांग तो और भी रंगीन होती आई हैं।
महंत शंकर गिरी की हवेली में आज भी नियमित रूप से भांग घुटती है। इसी तरह महंत शिवदयाल गिरि की हवेली, महंत राम गिरि की हवेली, श्रवणनाथ मठ के हनुमान घाट, तुलसी दास की हवेली आदि में घुटने वाली भांग पंचपुरी में बड़ी मशहूर है। हनुमान घाट पर भांग के नियमित रगड़े का लुत्फ तो नगर की जानी मानी हस्तियां भी उठाती आई हैं। कुंभ के मौके पर अखाड़ों में होने वाली गोबरी होली के बाद भी चकाचक भांग छानने की रवायत चली आ रही है। हरकी पैड़ी से सटे मुख्य हरिद्वार नगर के साथ कनखल के मेला क्षेत्र में चक्क छानी जाती रही है।बैरागी साधु भी भांग के शौकीन हैं, लेकिन कुंभ में उनका आगमन प्राय: होली बीतने के बाद होता है। पहले नगर में भांग पीने के ठेके भी होते थे। सिल पर भांग को रगड़ते हुए रगड़बाज गाते थे। प्रेम और सौहार्द के त्योहार के लिए उत्तराखंड भर में होलिका सजाई गई हैं। रविवार को होलिका दहन किया जाएगा। इस बार होलिका दहन में अशुभ माना गया भद्रा योग बाधा नहीं रहेगा। होलिका दहन का शुभ मुहूर्त शाम साढ़े छह बजे से रात साढ़े आठ बजे तक रहेगा। इसके बाद चौघड़िया में शुभ, लाभ व अमृत के दौरान भी होलिका दहन किया जा सकता है। होलिका दहन 28 मार्च को होगा, जबकि 29 मार्च को रंगों का त्योहार होली मनाई जाएगी। होलिका दहन होली त्योहार का पहला दिन, फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है।इसके अगले दिन रंगों से खेलने की परंपरा है। ज्योतिषाचार्य पंडित विष्णु प्रसाद भट्ट ने बताया कि होलिका दहन के दिन भद्रा योग दोपहर एक बजे तक रहेगा। जबकि, होलिका दहन शाम को गोधुलि बेला के समय से शुरू होगा।

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