• वर्ल्ड वाइल्ड लाइफ फंड (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) इंडिया के अनुसार वास स्थल की कमी एवं विखंडन हाथियों के अस्तित्व के लिए बड़ा खतरा है। कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में 2019 में हुई गणना में 1300 हाथी रिकॉर्ड हुए जबकि कॉर्बेट लैंडस्केप में 1500 से अधिक हाथी विचरण कर रहे हैं।

बढ़ता शहरीकरण, फैलता सड़कों का जाल और सिकुड़ते जंगलों के कारण वर्तमान में सबसे बड़ा संकट वन्यजीवों के स्वच्छंद विचरण पर आ गया है। ऐसे में हाथियों के कॉरिडोर विलुप्त हो रहे हैं और हाथी आबादी क्षेत्र में आ रहे है। कॉर्बेट लैंडस्केप में 1500 से अधिक हाथी विचरण कर रहे हैं। बता दें कि हाथी कॉरिडोर यानी एक ऐसा गलियारा या रास्ता जहां बिना किसी मानवीय हस्तक्षेप के हाथी एक जगह से दूसरी जगह स्वच्छंद रूप से विचरण करते हैं।

दक्षिण पतली दून-चिलकिया कॉरिडोर, चिलकिया-कोटा, कोट-मैलामी, फतेहपुर-गदगरिया, गौला रौखड़-गौराई टांडा, किलपुरा-खटीमा-सुरई हाथी कॉरिडोर में से कई बंद हो गए हैं। कालागढ़ डैम बनने से भी हाथियों के स्वच्छंद विचरण पर असर पड़ा है। वर्ल्ड वाइल्ड लाइफ फंड (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) इंडिया के अनुसार वास स्थल की कमी एवं विखंडन हाथियों के अस्तित्व के लिए बड़ा खतरा है। कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में 2019 में हुई गणना में 1300 हाथी रिकॉर्ड हुए जबकि कॉर्बेट लैंडस्केप में 1500 से अधिक हाथी विचरण कर रहे हैं।

डब्ल्यूडब्ल्यूएफ इंडिया के मिराज अनवर के अनुसार, हाथियों की एक अर्थपूर्ण आबादी संरक्षित वन क्षेत्रों के बाहर प्रमुख रूप से कृषि भूमि और मानवीय बस्तियों के आसपास रहती है जिसके कारण अक्सर मानव-हाथी संघर्ष की घटनाएं जैसे फसल क्षति, जानमाल की क्षति आदि घटनाएं होती हैं। कम होते गलियारों को रोकना, हाथियों और मानव के बीच होने वाले संघर्ष को कम करने के लिए जागरूकता लानी होगी।

कॉर्बेट में हाथियों का सबसे बड़ा बसेरा

वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर दीप रजवार बताते हैं कि कॉर्बेट में करीब 1300 हाथियों का बसेरा हैं और ये हाथियों का सबसे बड़ा वास स्थल है। यहां के विशाल घास के मैदान हाथियों को आकर्षित करते हैं जो इनका पसंदीदा चारागाह है। इस बार घास के मैदानों को जलाने की वजह से हाथियों का मैदानों की ओर पलायन ज्यादा हुआ। फरवरी में इन घास के मैदानों को चरणबद्ध तरीके से जलाया गया और जब मार्च में नई कोपलें फूटी तो हाथियों का जमावड़ा होना शुरू हो गया जो पिछले कुछ सालों से घास के मैदान नहीं जलाने के कारण ना के बराबर हो गया था। मई-जून में तो पूरे घास के मैदान हाथियों के झुंडों से पटे रहे, जहां पहले गिने चुने ही हाथियों के झुंड दिखाई देते थे।

 

 

By Tarun

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