संत कबीर की प्राकट्य स्थली पर तिब्बत-कैलाश मानसरोवर मुक्ति पर मंथन हुआ। इस दौरान तिब्बत की रक्षामंत्री ने कहा कि जल्द से जल्द कैलाश मानसरोवर को मुक्त किया जाए। कैलाश मानसरोवर की मुक्ति से ही तिब्बत की आजादी का मार्ग प्रशस्त होगा। हम भी चाहते हैं कि कैलाश मानसरोवर जल्द से जल्द मुक्त किया जाए ताकि हम भी वहां दर्शन करने जा सकें। तिब्बत हिंदुस्तान को अपना गुरु देश मानता है। हमारे तिब्बती ग्रंथों की शुरुआत आर्य भूमि भारत को नमन करने के साथ होती है।ये बातें तिब्बत की निर्वासित सरकार की रक्षामंत्री डोल्मा गायरी ने कहीं। वह मंगलवार को लहरतारा स्थित संत कबीर प्राकट्य स्थली पर कैलाश मानसरोवर और तिब्बत की मुक्ति के उद्देश्य से शिवधाम कैलाश मानसरोवर तिब्बत फ्रीडम एसोसिएशन के राष्ट्रीय अधिवेशन को संबोधित कर रही थीं। उन्होंने कहा कि हम तिब्बती जब अपनी पूजा या धर्मग्रंथों के पाठ की शुरुआत करते हैं तो सबसे पहले हम आर्य भूमि भारत को नमन करते हैं। इसके बाद ही हम अपनी तिब्बती भाषा में पूजा पाठ शुरू करते हैं।

रक्षामंत्री ने कहा कि परमपावन दलाई लामा 1959 में जब भारत आए तो तिब्बत की जनसंख्या 60 लाख थी। उसमें से एक लाख भी उनके साथ नहीं आए थे। सिर्फ 60 से 80 हजार लोग निर्वासित होकर भारत पहुंचे। ज्यादातर लोग अब भी चीन के कब्जे वाले तिब्बत में हैं। हम लोग 2009 से अहिंसक विरोध कर रहे हैं। देश के बाहर आंदोलन चल रहा है। मानसरोवर की मुक्ति से तिब्बत की मुक्ति का मार्ग प्रशस्त होगा।

शिवधाम कैलाश मानसरोवर तिब्बत फ्रीडम एसोसिएशन के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष मानवेंद्र सिंह ने कहा कि इस अधिवेशन में हमारी मुक्ति यात्रा का निर्णायक कदम सिद्ध होगा। तिब्बत की रक्षामंत्री का भारत आगमन कैलाश मानसरोवर और तिब्बत की मुक्ति के उद्देश्य को वैश्विक मंच पर और अधिक मजबूती प्रदान करेगा। रक्षा मंत्री की उपस्थिति से न केवल आंदोलन को वैचारिक शक्ति मिली है, बल्कि भारत-तिब्बत सांस्कृतिक धरोहर के साझा सरोकार भी सुदृढ़ हुए हैं।

राष्ट्रीय अधिवेशन में उत्तर प्रदेश समेत विभिन्न प्रदेशों से डेलीगेट्स शामिल हुए। सभी लोग इस आंदोलन के लिए अपनी टीम बनाएंगे। विशिष्ट अतिथि तिब्बत शिक्षा संस्थान के प्रो. जम्पा समतेन, प्रो. विजय कौल, भारतीय कुश्ती संघ के चेयरमैन संजय सिंह बबलू, माध्यमिक शिक्षक संघ की प्रदेश उपाध्यक्ष रितिका दुबे शामिल हुईं। इस दौरान अंबरीश सिंह भोला, डाॅ. धीरेंद्र राय, पूजा दीक्षित, महंत गोविंद दास शास्त्री, सुमित सिंह, प्रो. ओमप्रकाश सिंह ने भी विचार व्यक्त किए।

कैलाश मानसरोवर की मुक्ति के लिए सात देशों में चलाएंगे हस्ताक्षर अभियान

कैलाश मानसरोवर और तिब्बत की मुक्ति के लिए एक करोड़ हस्ताक्षर अभियान संत कबीर की प्राकट्य स्थली से हुई। काशी से शुरू हुआ यह अभियान भारत समेत सात देशों में पहुंचेगा। अध्यक्ष मानवेंद्र सिंह ने बताया कि अमेरिका, दक्षिण कोरिया, आस्ट्रेलिया, श्रीलंका, दुबई, अमेरिका और अफ्रीका में शिवधाम कैलाश मानसरोवर तिब्बत फ्रीडम एसोसिएशन के कार्यकर्ता इस अभियान को आगे बढ़ाएंगे। इससे कैलाश मानसरोवर और तिब्बत की मुक्ति के लिए आवाज तेज होगी।

जिनका अपना देश नहीं होता वह जानते हैं स्वतंत्रता का मतलब
स्वतंत्रता क्या होती है? हम जैसे लोग जिनका अपना देश नहीं होता है यह हम जानते हैं। आप कश्मीर से कन्या कुमारी कहीं भी जा सकते हैं। मैं भी चाहती हूं कि अपने माता-पिता के गांव जाऊं। ल्हासा जाऊं और कैलाश मानसरोवर बिना किसी रोक-टोक के जाऊं। तिब्बत की आजादी का सपना जरूर पूरा होगा। हम लोग चीन के साथ बातचीत करके इसका हल जरूर निकालेंगे।

उक्त बातें तिब्बत की निर्वासित सरकार की रक्षामंत्री डोल्मा गायरी ने कहीं। मंगलवार को लहरतारा स्थित संत कबीर की प्राकट्यस्थली पर रक्षामंत्री ने आंसूओं के साथ तिब्बतियों का दर्द साझा करते हुए कहा कि पिछले कई वर्षों से चीन से हमारी वार्ता हो रही है। तिब्बत के नौजवान भी चीन से इतने वर्षों से हो रही बातचीत पर सवाल उठाते हैं। वर्तमान की शताब्दी बातचीत की है और हर समस्या का हल बातचीत से ही निकलेगा। इसलिए हम लोग मध्यम मार्ग को अपनाते हुए चीन से बातचीत करने के लिए प्रयास कर रहे हैं।

आज हिंदुस्तान को देखकर कोई नहीं कह सकता है कि यह कभी किसी देश का गुलाम रहा होगा। यहां की धरती पर पैदा होने वाले महापुरुषों ने देश को आजादी दिलाई। जिनके पास अपना कोई देश नहीं होता वह स्वतंत्रता का मतलब जानते हैं। हम चीन के साथ ना केवल कैलाश मानसरोवर बल्कि तिब्बत के बारे में बात करना चाहते हैं। परमपूज्य दलाईलामा के मार्गदर्शन में हम लोग इस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।

बनारस से तिब्बत के संबंध के सवाल पर रक्षामंत्री ने कहा कि काशी और तिब्बत का बहुत पुराना संबंध है। सिर्फ देवी-देवताओं के साथ ही नहीं काशी नरेश के साथ भी तिब्बत का संबंध रहा है। तिब्बत की कोई भी पूजा और अनुष्ठान खतक के बिना संपन्न नहीं हो सकती है। यह खतक वाराणसी से ही बनकर आती है और 100 साल पहले से बनती आ रही है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *