हरिद्वार में हर की पैड़ी के पास कुशाघाट के नजदीक पुराने घरों में पंडों की अलमारियों में करीने से रखे गए सैकड़ों साल पुराने बही खातों में दर्ज वंशावली या सूचना गूगल को भी मात देती है। हरिद्वार के करीब 2000 पंडों के पास कई पीढ़ियों से अपने यजमानों के वंशवृक्ष मौजूद हैं। अपने मृतक परिजनों के क्रियाकर्म करने जो भी लोग यहां आते हैं, अपने पुरोहितों की बही में पूर्वजों के साथ अपना नाम भी दर्ज करवा लेते हैं। यह परंपरा तब से चल रही है, जब से कागज अस्तित्व में आए। उससे पहले भोजपत्र पर भी वंशवृक्ष के लिपिबद्ध होने का जिक्र है। पर वह अब लुप्त से हो गए हैं। यहां के प्रतिष्ठित पुरोहित पंडित कौशल सिखौला ने बताया कि यहां के पंडे हरिद्वार के ही मूल निवासी हैं।कागज के पहले उनके पूर्वज पंडों को अपने लाखों यजमानों के नाम, वंश व क्षेत्र जुबानी याद रहते थे। जिन्हें वह अपने बाद आगामी पीढ़ी को बताते थे। यहां के पंडों में यजमान, गांव, जिला व राज्यों के आधार पर बनते हैं। किसी भी पंडे के पास जाने पर वह यथासंभव जानकारी दे देते हैं कि उनके वंश के कौन-कौन हैं। कई बार किसी व्यक्ति की मौत पर उसकी संपत्ति संबंधी परिवारों के आपसी विवादों में वंशावलियों का निर्णय उन्हीं बही की मदद से होता है। इन बही को देखने अदालत के लोग यहां आते हैं, जिसके अनुसार अदालतें अपना निर्णय करती हैं।इन बही खातों में पुराने राजा महाराजाओं से लेकर आम आदमी की वंशावली दर्ज है। पंडित कौशल सिखौला का कहना है कि कंप्यूटर युग में भी इन प्राचीन बहीखातों की उपयोगिता कम नहीं हुई है।क्योंकि इन बही खातों में उनके पूर्वजों की हस्तलिखित बातें व हस्ताक्षर दर्ज होते हैं, जिनकी महत्ता किसी भी व्यक्ति के लिए कंप्यूटर के प्रिंट आउट से अधिक होती है।पंडित कौशल सिखौला का कहना है कि जहां उनकी आने वाली पीढ़ियां पढ़ लिखकर अन्य व्यवसाय में जा रही हैं, वहीं कुछ पढ़े-लिखे युवा व सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारी अपनी परंपरागत गद्दी संभाल रहे हैं।