भारत के वैदिक ऋषि – मुनियों ने मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम से भी हजारों वर्ष पूर्व अपने कठोर तपश्चर्या में अनवरत प्रयास के फलस्वरूप एक परमात्मा को प्रत्यक्ष किया और पूरे भारत की वनस्थलियों में आश्रम बनाकर शिष्य परम्परा में हृदयंगम कराते हुए उसे संजोकर रखा । वही सत्य आज से पाँच हजार वर्ष पूर्व भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में भली प्रकार दृढ़ाया ।
उन्होंने कहा कि एक आत्मा ही सत्य है ; अन्य जो कुछ भी है वह नश्वर है , अस्तित्वविहीन है । यह सन्देश उन्होंने मानवमात्र को सम्बोधित कर कहा । विश्व के परवर्ती महापरुषों ने इसे ज्यों – का – त्यों अपनाया तथा देशज और क्षेत्रीय भाषा में प्रस्तुत किया ।
अहुरमज्दा , गॉड , अल्लाह इत्यादि विविध नामों से पुकारा , जो एक ही परमात्मा का बोध कराते हैं , अतः वे सब आपके अनुयायी ही हैं ।
उस एक परमात्मा की प्राप्ति की विधि का आचरण ही धर्म है । धर्म एक है । अतः धर्मनिरपेक्षता के विषय में नारे लगानेवाले , प्रतीत होता है , भ्रमित हैं ,
क्योंकि एक से अधिक संख्या होने पर ही पक्ष और
विपक्ष का प्रश्न उठता है ।

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