भारत के अनेक गांवों में अनेक संतों की जागृत #समाधियां हैं जहां इन संतों ने जीवित समाधियां ली हैं।यह संत आज भी वहां स्थानदेवता के रूप में पूजित होकर मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।
इसी श्रृंखला में कैथल हरियाणा के बाबा #लदाना गांव में बाबा #राजपुरी जी महाराज का प्रसिद्ध डेरा है। बाबा राजपुरी जी महाराज #शांकर परम्परा के परम तपस्वी संन्यासी थे जिनका समय लगभग ५०० वर्ष पहले का बताया जाता है।संत राजपुरी जी महाराज का जन्म लदाना गांव में ही हुआ ।यह बचपन से ही #साधुओं का संग करते हुए तपस्या करते थे। गांव वाले इन्हे साधारण बालक ही समझते थे। इनके बचपन का #प्रसंग है कि यह उस रास्ते से जा रहे थे जहां कई भैंसें बैठी हुई थी। भैंसों के मालिक ने इन्हें रोकते हुए कहा कि इधर से मत जाओ , भैंसें बैठी हुई हैं ये ऊठ जाएंगी।
राजपुरी जी ने कहा कि भैंसें नहीं उठेंगी। इनके जाने के कई घंटे बाद भी भैंसें बैठी रही। किसान को चिंता हुई तो बाबा राजपुरी जी से माफी मांगी और भैंसों को उठाने का अनुरोध किया। तब बाबाजी ने माफ करते हुए कहा कि एक भैंस कभी नहीं उठेगी बाकि सब उठ जाएंगी। ऐसा ही हुआ।
बाबा राजपुरी जी महाराज का जीवन तपस्या और #चमत्कारों से भरा हुआ है।इनकी कृपा से पटियाला रियासत के राजा को पुत्र प्राप्ति भी हुई।
आस-पास के राजा इनका आशीर्वाद लेकर ही युद्ध के लिए निकलते थे।
इन्होंने जब गांव लदाना में जीवित समाधी लेनी चाही तब पूरा गांव एकत्रित हो गया । बाबाजी ने गांव वालों से कोई वरदान मांगने को कहा। गांव वालों ने मांगा कि आपकी कृपा सदा हम पर बनी रहे। बाबाजी ने #शुभाशीर्वाद दिया।आज भी बाबाजी सबकी इच्छा पूरी करते हैं। बाबाजी ने अपने परिवार जनों से कहा कि इस परिवार का भी मुझ पर #ऋण बाकि है अतः आप भी कोई वरदान मांगों। परिवार के मुखिया ने कहा कि हमें ऐसा वरदान दें कि जिसको भी हम कंकर/ढ़ेला मारें वह जिन्दा न बचे।
बाबाजी इस विचित्र वरदान की बात सुनकर गंभीर होकर बोले– ठीक है , तुम्हारे वंश में #ढ़ेला फैंकने वाला ही नहीं रहेगा। उस परिवार ने जिस पशु आदि को कंकर मारा वही ढ़ेर हो जाता,पर समयानुसार उनका वंश लुप्त हो गया।
बाबाजी के भारतवर्ष में ३६५ डेरे हैं।लदाना में इनकी समाधि है। आज भी भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। इसी परम्परा में २५० वर्ष पूर्व प्रसिद्ध नागा साधु
भी हुए, जो इसी डेरे से सम्बंध रखते हैं।इनकी दीक्षा भी यहीं हुई है। यह एकबार भ्रमण करते हुए #गंगासागर गये। वहां इनको भयानक दस्त लग गये।
परेशान होकर इन्होंने सोचा कि यह शरीर भी मल का थैला है। इसको ढ़ोकर भी क्या करना??
एसा विचार करके वे #जलसमाधि लेने के लिए सागर में उतरे। लेकिन धीरे-धीरे पार करते हुए एक किनारे से दूसरे किनारे पर पार पहुंच गए परन्तु पानी घुटने से ऊपर नहीं आया।इस #आश्चर्य को देखकर यही समझा कि प्रभु इच्छा से अभी शरीर धारण करना ही चाहिए।
फिर यह संत स्वामी #रामकृष्ण के गुरु के रूप में विख्यात हुए रामकृष्ण को वेदान्त का उपदेश देकर उसे विराट #समष्ट्यात्मक परब्रह्म का साक्षात्कार करवा कर #परमहंस बना दिया।
कुछ दिन रामकृष्ण के पास ठहर कर वापिस पंजाब (उस समय लदाना , पंजाब का ही हिस्सा था)
आ गये। उनके भी अनेक आश्रम हैं।पर उनकी समाधि यहीं बाबा लदाना गांव के डेरे में ही है।
मैं चार दिन पहले बुआजी के गांव बुढ़ाखेड़ा गया हुआ था,जो लदाना गांव के पड़ोस का ही गांव हैं ।
सुबह से शरीर में थकावट/दर्द महसूस हो रहा था। लदाना में ही डाक्टर/मैडिकल स्टोर था। मैंने खुशीराम (बुआ के लड़के) से कहा कि बाईक निकालो ,लदाना चलेंगे।
लदाना गांव पहुंचने पर मैंने कहा कि सबसे पहले बाबाजी के डेरे पर चलेंगे। वहां जाकर बाबाजी की समाधि व #धूने के दर्शन किए।
मैडिकल स्टोर तक आते-आते दर्द समाप्त हो गया था।
खुशीराम के पांव में दर्द था(पिछले दो महीने पहले दबाव आने से घुटने में फ्रैक्चर सा हो गया था,जो डाक्टर को दिखाने पर भी ठीक नहीं हुआ था)
अगले दिन फिर लदाना गांव में आयोडैक्स लाने के लिए जाना हुआ तो मैंने कहा कि पहले समाधि पर ही चलेंगे।
समाधि की ओर रोड़ पर मुड़ते हुए बाईक के पिछले टायर के नीचे एक पत्थर आने से अनबैलैंस से खुशीराम के पांव पर कड़क दबाव पड़ा। दर्शन करके हम वापिस मैडिकल स्टोर पर आए और आयोडैक्स खरीदी। घर आकर पांव को देखा तो आश्चर्य हुआ कि घुटने कि गांठ गायब हो गई थी। दर्द भी समाप्त हो गया था।
बाबा राजपुरी जी महाराज हिंगलाज माता के विशेष उपासक थे।मां ने उन्हें दर्शन दिए तो बाबाजी ने कहा कि मां आप यहीं विराजमान हो जाएं। #हिंगलाज माता ने आशीर्वाद दिया कि मैं अष्टमी की रात यहां उपस्थित रहूंगी।
आज भी प्रतिवर्ष #दशहरे से पहले अष्टमी की रात हिंगलाज माता जाल के पेड़ पर पवित्र धागा बांधकर मेले को आरंभ करती हैं।यह मेला दशहरे तक चलता है जिसमें लाखों #श्रद्धालु बाबाजी व माता हिंगलाज की पूजा करते हैं।
शिवरात्रि पर #शिवस्वरूप बाबाओं को सादर प्रणाम है वह माता हिंगलाज के चरणों में प्रार्थना है कि भक्तों पर प्रसन्न हों……
कृष्ण चंद्र शास्त्री
कुरुक्षेत्र १९.७.२०