मकर संक्रांति स्नान के साथ गुरुवार से प्रयागराज में माघ मेले की शुरुआत हो गई है। भीषण ठंड और कोरोना के खतरे के बावजूद लोगों की आस्था भारी पड़ रही है। गुरुवार भोर से ही बड़ी संख्या में श्रद्धालु संगम स्नान कर रहे हैं। घाट किनारे स्नान कर पूजा-अर्चना के बाद श्रद्धालु अंजलि से सूर्य को अर्घ्य देकर दान दक्षिणा दे रहे हैं।
मालूम हो कि इस बार 37 साल बाद श्रद्धालु पंचग्रही योग में संगम में स्नान कर रहे हैं। दान-पुण्य और स्नान के इस पर्व में 37 वर्षों के बाद यह योग बना है। सुबह घने कोहरे के बावजूद श्रद्धालुओं का आना लगा रहा। वहीं दिन चढ़ने के साथ मेले में भीड़ बढ़नी भी शुरू हो गई
इस बार संगम तट पर आम दिनों से तो अधिक भीड़ है, लेकिन पिछले वर्षों की संक्रांति के मुकाबले लोगों की संख्या कम है। भीड़ कम होने के कारण शास्त्री ब्रिज से बसों का संचालन जारी रखा गया है, जबकि पहले यहां से संचालन रोक दिया जाता था।
कोरोना रिपोर्ट आवश्यक
इस बार मेले में आने वाले हर श्रद्धालु के लिए कोरोना टेस्ट की रिपोर्ट लाना अनिवार्य कर दिया गया है। कोरोना से बचाव के दिशानिर्देशों को ध्यान में रखते हुए घाटों पर सोशल डिस्टेंसिंग के साथ ही स्नान की व्यवस्था की गई है। बता दें कि मेले में इस बार छह प्रमुख स्नान पर्व होंगे।
क्यों मनाई जाती है मकर संक्रांति
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब सूर्य धनु राशि को छोड़कर मकर राशि में आते हैं, तब मकर संक्रांति मनाई जाती है। पूरे साल में कुल 12 संक्रांतियां होती हैं, लेकिन इनमें से चार संक्रांति मेष, कर्क, तुला और मकर संक्रांति बहुत महत्वपूर्ण मानी गईं हैं।
पौष मास में सूर्य का धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश मकर संक्रांति के रूप में जाना जाता है। सूर्य का मकर रेखा से उत्तरी कर्क रेखा की ओर जाना उत्तरायण और कर्क रेखा से दक्षिणी मकर रेखा की ओर जाना दक्षिणायण कहलाता है।
शास्त्रों के अनुसार उत्तरायण देवताओं का दिन तथा दक्षिणायण देवताओं की रात होती है। सूर्य जब दक्षिणायन में रहते है तो उस अवधि को देवताओं की रात्रि व उत्तरायण के छ: माह को दिन कहा जाता है। दक्षिणायन को नकारात्मकता और अंधकार का प्रतीक तथा उत्तरायण को सकारात्मकता एवं प्रकाश का प्रतीक माना गया है।