स्वामी प्रसाद मौर्या कुशीनगर जिले की पडरौना विधानसभा सीट से लगातार तीन बार विधायक चुने जा चुके हैं। वर्ष 2009 में बसपा के टिकट पर लोकसभा का चुनाव लड़े, लेकिन 20 हजार वोटों के अंतर से हार गए। इसी वर्ष स्वामी प्रसाद मौर्या ने विधानसभा का उपचुनाव लड़ा और बड़े अंतर से जीत दर्ज कर कुशीनगर की राजनीति के केंद्र में आ गए। यह सिलसिला पिछले 13 वर्षों से जारी है। बताया जा रहा है कि बसपा सरकार में स्वामी प्रसाद मौर्य ने अपने हिसाब से काम किया था, लेकिन यह आजादी भाजपा सरकार में नहीं मिली। कुछ भाजपा नेताओं से तालमेल भी अच्छा नहीं था।
बात वर्ष 2008 की है, रामकोला में बसपा की महारैली हो रही थी। तत्कालीन मुख्यमंत्री व बसपा सुप्रीमो मायावती ने मंच से कहा कि ‘कुशीनगर जिले का उनकी सरकार में कोई प्रतिनिधित्व नहीं है। वे अपने सबसे विश्वासपात्र व प्रदेश अध्यक्ष स्वामी प्रसाद मौर्या को यहीं छोड़कर जा रही हैं’। इस रैली के कुछ दिनों बाद वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव का बिगुल बजा और बसपा ने अपने प्रदेश अध्यक्ष स्वामी प्रसाद मौर्या को कुशीनगर लोकसभा सीट से उम्मीदवार घोषित कर दिया। कांग्रेस के आरपीएन सिंह ने स्वामी प्रसाद मौर्या को करीब 20 हजार वोट के अंतर से हरा दिया।
पडरौना से विधायक रहे आरपीएन सिंह चुनाव जीतकर सांसद बन गए, लिहाजा उपचुनाव हुआ। तब प्रदेश के 38 मंत्रियों ने यहां डेरा डाल दिया। पहली बार पडरौना से बसपा का खाता खुला और स्वामी प्रसाद मौर्या बड़े अंतर से चुनाव जीत गए। बसपा सरकार में सहकारिता मंत्री बने। वर्ष 2012 में भी वे इस सीट से बसपा के टिकट पर विधायक चुने गए और नेता प्रतिपक्ष बन गए। वर्ष 2017 में मायावती से खटपट के बाद वे भाजपा में आए और पडरौना से ही लगातार तीसरी बार विधायक चुने गए।