प्रयागराज। जगद्गुरु स्वामी अधोक्षजानंद देवतीर्थ जी महाराज ने मंगलवार को दो टूक कहा कि देश की सीमाओं पर सनातन धर्म के विस्तार सहित धर्मांतरण को रोकने के लिए अब गांव-गांव में अनुष्ठान किए जाएंगे। इसकेतहत गांवों में यज्ञादि धार्मिक अनुष्ठानों का निरंतरता बनाए रखी जाएगी।

माघ मेले में जीटी रोड सेक्टर 5 स्थित श्रीआद्य शंकराचार्य धर्मोत्थान संसद के शिविर में आयोजित धर्म संसद में उन्होंने कहा, सीमावर्ती क्षेत्रों के गावों में धार्मिक अनुष्ठानों की निरंतरता से वहां के सनातन धर्मावलंबियों का मनोबल बढ़ेगा। साथ ही धर्मांतरण पर प्रभावी रोक भी लगेगी। लेकिन, इससे लिए प्रमुख संतों और महात्माओं की उपेक्षा बंद करनी होगी। चर्चा के दौरान उन्होंने पूर्वोत्तर में किए जा रहे धार्मिक अनुष्ठानों और यात्राओं की जानकारी दी।

धर्म संसद में काशी सुमेरु पीठाधीश्वर जगद्गुरु स्वामी नरेंद्रानंद सरस्वती जी महाराज ने भी देश के मठ-मंदिरों का अधिग्रहण अविलंब समाप्त किए जाने की मांग की। कहा, अब इन क्षेत्रों में वरिष्ठ संतों के नियमित प्रवास से धार्मिक कार्यक्रमों की निरंतरता बनेगी। धर्मांतरण पर पूर्ण प्रतिबंध के साथ ही सनातन धर्म से अन्य धर्मों में गए लोगों की घर वापसी भी कराई जाएगी। इससे धर्मांतरण के कार्य में लगी मिशनरियों का मनोबल टूटेगा।
असम सरकार के कैबिनेट मंत्री बोलिन सैतिया बोले, पूर्वोत्तर भारत में जगद्गुरु स्वामी अधोक्षजानंद देवतीर्थ जी महाराज की पहल से माहौल काफी कुछ बदला है। उम्मीद है आगे भी संतों का आशीर्वाद मिलेगा जिससे क्षेत्र में सनातन धर्म का प्रचार और शांति बहाल होगी। इससे पहले बोलिन सैतिया ने गुप्त नवरात्रि के आठवें दिन हुए याज्ञिक अनुष्ठान में राज्य के कल्याण के लिए विशेष पूजा-अर्चना करने सहित आहुतियां डालीं। गोरक्षनाथ मंदिर के मठ पुरोहित वेदाचार्य रामानुज त्रिपाठी ने भी सुझाव दिया कि यदि संतों की टोली देश के सीमावर्ती गांवों में प्रवास करके हवन-पूजन कराएगी तो उन क्षेत्रों में भी सनातन धर्म का प्रसार होगा। धर्म संसद में रामानुज संप्रदाय के दामोदर प्रपन्नाचार्य, परमहंस ब्रजभूषणानंद,महामंडलेश्वर झंडा बाबा समेत अनेक संत-महात्मा मौजूद थे।
पूर्णिमा तक चलेगा अन्नक्षेत्र
माघ मेला स्थित धर्मोत्थान संसद के शिविर में निर्मोही अखाड़े के महंत छैलबिहारी दास की देखरेख में जारी अन्न क्षेत्र भंडारा मेला अवधि तक जारी रहेगा। प्रतिदिन सैकड़ों साधु-संत तथा श्रद्धालु भंडारे में भोजन-प्रसाद ग्रहण करते हैं।

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