प्रयागराज, जेएनएन। प्रयागराज का ग्रामीण इलाका विभिन्न सभ्यताओं को अपने में समेटे हुए हैं। गंगापार के कई गांवों में छोटे-छोटे राजवंश का इतिहास छिपा है। इन गांवों में ऊंचे-ऊंचे टीले इनके अंदर दबी सभ्यता को गवाही दे रहे हैं। टीलों के आसपास खेती करने वालों को अक्सर यहां प्राचीन अवशेष मिलते हैं। हंडिया तहसील के जलालपुर गांव में दो ऐसे टीले हैं जो ग्रामीणों के लिए रहस्य बने हुए हैं। दोनों टीलों के बीच करीब 150 गज का अंतर है। इन टीलों की आकृति एक डमरू जैसी दिखती है।
टीले पर पड़े हैं असंख्य ईंट के टुकड़े
क्षेत्र के एक शिक्षक विनोद कुमार पांडेय बताते हैं कि फूलपुर रेलवे स्टेशन से कोई पांच मील दक्षिण और पूर्व के कोने में जलालपुर गांव है। यह गांव काफी लोकप्रिय है। उसकी बस्ती से पूर्व दो बहुत बड़े-बड़े टीले हैं। इन टीलों पर असंख्य ईंट के टुकड़े बिखरे हैं। इनमें पूर्व की ओर वाले टीले का क्षेत्रफल 60 बीघा का है। पश्चिम की तरफ के टीले का विस्तार 70 बीघा है। इसके चारो ओर एक झील है। इस झील में साल भर जल भरा रहता है। दोनों टीलों के बीच 150 गज का अंतर होगा। पांडेय बताते हैं कि टीले पर एक से दूसरे पर जाने के लिए कुछ ऊंचा रास्ता बना हुआ है। इसी वजह से इन टीलों की आकृति एक डमरू सी बन गई है।
राजा बेन का कोट नाम से भी टीला
जलालपुर गांव के लोग इन टीलों को राजा बेन का कोट भी कहते हैं। ग्रामीण एक किवदंती का जिक्र करते हुए बताते हैं कि पुराने समय में राजा बेन यहां रहते थे। जिनके राज्य में महंगाई बिल्कुल नहीं थी। किसानों को केवल एक कौड़ी बीघा खेती का लगान देना पड़ता था। राजा का कोष सदैव खाली रहता था। एक दिन रानी ने राजा से कहा कि यदि एक-एक कौड़ी लगान और बढ़ा दिया जाए तो प्रजा को कोई कष्ट न होगा और हमारे पास भी कुछ धन हो जाएगा। राजा ने इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। दूसरे दिन प्रात:काल लोगों ने देखा कि कोट से एक बिल्ली घबराई हुई बाहर भागी। किसी ने पूछा कि क्या बात है। इस पर उसने कहा कि बिल्ली को ईश्वर ने बोलने की शक्ति दे दी है। फिर उसने कहा कि राजा की नीयत अब बिगड़ गई है। जिसके कारण इस कोट पर जल्द ही घोर आपदा आने वाली है। जो इसको डीह के रूप में परिणत कर देगी। कुछ दिनों के पश्चात यह बात सत्य निकली और वह कोट नष्ट-भ्रष्ट होकर डीह हो गया।