काशी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने न केवल दुनिया को धार्मिक-आध्यात्मिक संदेश दिया, बल्कि ऐसी विसात बिछाई जिसकी काट निकालना विपक्ष के लिए आसान नहीं होगा। विश्वनाथ धाम के लोकार्पण के मौके प्रधानमंत्री का एक-एक पग और शब्द राजनीतिक संदेश देते दिखा। उन्होंने 2022 की ही नहीं बल्कि 2024 और उससे आगे की भी राजनीतिक की दिशा तय करने की कोशिश की। कार्यक्रम के दौरान उन्होंने सनातन धर्म की परंपराओं को सहेजते हुए जिस तरीके से कार्य निष्पादन किया उससे उनके विरोधी भी कायल हो गए।औरंगजेब बनाम शिवाजी और सुहेलदेव बनाम सालार मसूद गाजी का जिक्र कर मोदी ने हिंदुओं की आस्था पर अतीत पर हुए हमलों के घावों को भरने एवं ऐसे आक्रमणों के चिह्नों को मिटाकर भारत की सनातन संस्कृति के प्राचीन गौरवशाली इतिहास के नए सिरे से सृजन का संदेश दिया। प्रधानमंत्री ने स्पष्ट रूप से न किसी राजनीतिक दल का नाम लिया और न किसी नेता का । पूजा के बाद इस परिसर का निर्माण करने वाले श्रमिकों पर पुष्पवर्षा की, उनके साथ फोटो खिंचाई, भोजन किया । इसके निहितार्थ प्रधानमंत्री के संबोधन के संकेतों से ज्यादा गूढ़ और विस्तार लिए हुए हैं । जो भविष्य में कहीं न कहीं गरीबों, वंचितों, शोषितों, पिछड़ों को भाजपा के साथ भावनात्मक रूप से जोड़ने में मददगार बन सकते हैं।काशी से आज यह संकेत मिल गए हैं कि प्रधानमंत्री मोदी और संघ परिवार ने राजनीति की चौसर पर विपक्ष को उन  सियासी चालों से मात देने की ठानी है जिसमें विपक्ष के लिए ध्रुवीकरण की सियासत करना आसान न हो सके। पर, भाजपा का हिंदुत्व का एजेंडा बिना हिंदू या हिंदुत्व का उल्लेख किए सधता चला जाए। पीएम मोदी ने जिस श्रद्धा से कालभैरव मंदिर में पूरे भाव से पूजा-अर्चना की, रुद्राक्ष की माला पहने गंगा के घाटों का अवलोकन किया। इसके बाद केसरिया कपड़े पहनकर गंगा में डुबकी लगाई। गंगा का पूजन किया, सूर्य को अर्घ्य दिया। मंत्रों का जाप किया । फिर हाथ में गंगा जल लेकर पैदल बाबा विश्वनाथ धाम पहुंचे। वहां पूरी श्रद्धा से पूजा-अर्चना की। अंत में वहां के आचार्यों के बाबा के धाम को भव्यता देने के लिए धन्यवाद पर बार -बार यह कहा, सब इन बाबा भोलेनाथ की कृपा है । उसके बाद शायद उन्हें हिंदू शब्द का प्रयोग करने की जरूरत भी नहीं रह गई है।
मोदी को विपक्ष पर हमले के लिए हिदुत्व शब्द की जरूरत नहींमोदी और उनसे पहले योगी ने किसी पार्टी का नाम तो नहीं लिया, लेकिन वह सब कुछ कहा जिससे अतीत में गैर भाजपा सरकारों की हिंदुओं की आस्था के प्रतीकों के साथ की गई अनदेखी का संदेश चला जाए। अनदेखी करने वालों के चेहरों का भी संकेत मिल जाए। भगवान बुद्ध, चार जैन तीर्थंकरों, बल्लभाचार्य, तुलसीदास, कबीर सहित कई संतों के सरोकारों, छत्रपति  शिवाजी महराजा, महाराजा रणजीत सिंह, महारानी अहिल्याबाई होल्कर के संकल्पों, आदि शंकराचार्य के प्रयासों, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की इच्छा से लेकर बिस्मिल्लाह खान, प्रेमचंद, चंद्रशेखर आजाद, रानी लक्ष्मीबाई सहित अनगिनत सरोकारों एवं भारतीय परंपराओं की अनदेखी के लिए विपक्ष कठघरे में खड़ा  हो जाए । पर, उसे भाजपा पर मुस्लिम विरोध की राजनीति करने के आरोप लगाने के ज्यादा मौके न मिले।

विपक्ष यदि हमला करे भी तो बात विरासत बचाने और आक्रांताओं के अपमान के प्रतिकार पर आ टिके। वरिष्ठ पत्रकार वीरन्द्र भट्ट कहते हैं कि यह साफ हो गया है कि भाजपा की कोशिश है कि विपक्ष सनातन संस्कृति की विरासत बचाने, उसे सहेजने एवं संवारने तथा विकास को रफ्तार देने की राह में रोड़े डालता दिखे ताकि वह खुद खलनायक बन जाए। इसका संकेत प्रधानमंत्री के भाषण में उस समय मिल भी गया जब उन्होंने कहा कि आज हिसाब-किताब का दिन नहीं है, लेकिन उनके बनारस में मौजूद सनातन संस्कृति के प्रतीकों को सहेजने के संकल्प पर कुछ लोगों ने सवाल उठाया था। प्रधानमंत्री ने यह कहकर विपक्ष को शायद सिर्फ बनारस के लोगों के बीच सवालों के घेरे में नहीं खड़ा करने की कोशिश की है, बल्कि इस बहाने उन्होंने सनातन संस्कृति को मानने और इसमें श्रद्धा रखने वालों की नजर में कठघरे में खड़ा करने का प्रयास

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