महाकुंभ मेले के लिए आए देशभर के संन्यासियों का धूना 24 घंटे चेतन रहता है। धूनी में हर समय अग्नि प्रज्ज्वलित होने से संन्यासी सुबह तीन बजे से उठकर रात 12 बजे तक तप और ध्यान में मगन रहते हैं। इस अवधि में वह महज पांच घंटे ही आराम करते हैं। इतना कठोर होता है संन्यासियों का जीवन।
अपनी पुरानी परंपरा के अनुसार देशभर से आए संन्यासियों की निरंजनी अखाड़ा में छावनी बनी हुई है। जिसमें संन्यासी अपने टेंट लगाकर रह रहे हैं। संन्यासियों की दिनचर्या सुबह तीन बजे से शुरू हो जाती है। वह सुबह तीन बजे उठकर गंगा स्नान आदि नित्यकर्म करने के बाद चार बजे से अपने ईष्ट देव की पूजा-पाठ करना शुरू कर देते हैं। छह बजे तक ईष्ट देव की आराधना की जाती है। इसके बाद संन्यासी अपना तप शुरू कर देते हैं।तप करीब 11 बजे तक चलता रहता है। इसके बाद 12 बजे भोजन करने के बाद एक बजे से तीन बजे तक कुछ संन्यासी आराम करते हैं, जबकि कुछ भोजन करने के बाद फिर से तप शुरू कर देते हैं। कुछ संन्यासियों के गुरू उन्हें प्रवचन भी देते हैं।शाम को तीन बजे के बाद फिर से धार्मिक कार्यक्रमों का समय शुरू होने से संन्यासी गंगा स्नान करने के लिए जाते हैं। गंगा स्नान करने के बाद चार बजे से फिर से तप और ध्यान में जुट जाते हैं, बीच में आठ से नौ बजे तक भोजन करने के बाद रात 12 बजे तक साधना चलती रहती है। स्वामी नारायण गिरि, स्वामी उदय भारती, स्वामी मनीष गिरि और नागा संन्यासी लक्ष्मण गिरि ने बताया कि कुंभ मेले के दौरान लगाई गई धूनी में 24 घंटे अग्नि प्रज्ज्वलित रखकर उसे चेतन रखा जाता है और संन्यासी अग्नि देवता की पूजा करते हैं। वहीं, किसी भी कुंभ नगर में रौनक तब आती है जब बैरागी बाबाओं की अणियों का आगमन शुरू होता है। गंगा के द्वीपों पर चारों ओर यज्ञ, हवन और अग्निहोत्र दिखाई पड़ते हैं। दिगंबर, निर्वाणी और निर्मोही अणियों की छावनियां वेदमंत्रों से गूंज उठती हैं। विष्णु, राम और कृष्ण संकीर्तन का भक्तिसागर गंगा के समानांतर बहता नजर आता है। अणियों के महंतों और खालसों के ढेरों पर बहने वाली भक्तिधारा कुंभ महापर्व के भक्तिभाव को द्विगुणित कर देती है। बैरागी छावनियों में ज्ञान की गंगा का प्रवाह देखते ही बनता है।बैरागी वृंदावन में कुंभ स्नान करके आते हैं। संन्यासियों का एक शाही स्नान बैरागियों के आने से पहले हो जाता है। हरिद्वार कुंभ में बैरागी वैष्णव अखाड़ों के लिए लंबा चौड़ा बैरागी द्वीप मेला भूमि का अंग है। अग्नि तापी साधु संत बैरागी साधुओं के डेरों पर सर्वाधिक आकर्षित करते हैं। ऐसे बैरागी बाबा उपलों का एक घेरा बनाते हैं। वे स्वयं बीच में आसान जमा लेते हैं। उनके साथी और शिष्य चारों ओर आग लगा देते हैं।बीच में बैठे बाबा शरीर के ताप की परवाह किए बगैर साधना जारी रखते हैं। खास बात है कि यह साधना खुले मैदान में तपती धूप के बीच होती है। बाबाओं के बदन तांबे की तरह हो जाता हैं। बैरागियों के डेरों में अनेक स्थानों पर यज्ञ हवन होते हैं। वैष्णव संतों का संबंध विष्णु के समस्त 24 अवतारों से है, इसलिए सभी रूपों के भक्त बैरागी द्वीप पर डेरे बसाते हैं। दुर्गा मां के शक्ति रूपों की साधना भी हरिद्वार कुंभ में की जाती है। बैरागी साधुओं के समस्त पंडालों और छोटे-छोटे तंबुओं में सायंकालीन आरती जरूर होती है। कुंभ में बैरागियों की शोभा देखते ही बनती है।