कुंभ शुरू होने से पहले तमाम अखाड़े नगर प्रवेश के बाद अपनी धर्म ध्वजा छावनियों में स्थापित करते आये हैं जिसके लिए एक विशेष कद-काठी के पेड़ के तने को जंगल से काटकर लाया जाता रहा है, लेकिन इस बार पेड़ों को बचाने के लिए सदियों पुरानी यह परंपरा बदलने जा रही है। इन बार धर्मध्वजा के लिए पेड़ों को नहीं काटा जाएगा, बल्कि स्टील के बड़े पोल पर पूजा-अर्चना कर धर्म ध्वजा ससम्मान स्थापित की जाएगी। अखाड़ों की छावनियों में स्थापित होने वाली धर्म ध्वजाओं को लगाने के लिए 108 फीट से 151 फीट तक की लकड़ी का प्रयोग किया जाता रहा है।

जिसे आसपास के जंगलों से काटकर लाया जाता है। लेकिन इस बार जूना, अग्नि और आह्वान अखाड़े ने पेड़ों का कटान न करने का एक बड़ा संदेश देने के लिए सदियों पुरानी परंपरा को बदलने का निर्णय लिया है जिसमें कई अन्य अखाड़े भी साथ आ रहे हैं। मेला प्रशासन को इन अखाड़ों ने धर्म ध्वजा स्थापित करने के लिए हाईमास्ट लाइट वाले पोल स्थापित करने को कहा है जिसकी ऊंचाई अखाड़े अपने हिसाब से बताएंगे। इस पोल पर रोशनी की पर्याप्त व्यवस्था के साथ पूरे साल अखाड़े का ध्वज लहराएगा। इस पोल पर अच्छी किस्म का गेरुआ रंग करने को कहा गया है।

कटने से बचेंगे 26 बड़े पेड़
कुंभ के दौरान अखाड़े अपनी परंपरा के अनुसार धर्म ध्वजा की ऊंचाई रखते हैं जिसके लिए उसी ऊंचाई के पेड़ों को काटकर जंगल से मंगवाया जाता है। हर बार 26 पेड़ों को काटा जाता है जिन्हें बड़ा होने में दो दशक से अधिक का समय लगता है।

किसी भी पेड़ को निशान स्थापित होने लायक बनने में करीब 25 साल लगते हैं और कुंभ में इन बड़े वृक्षों को काट दिया जाता है। पर्यावरण की रक्षा के लिए इस बार इन पेड़ों की जगह पाइप पर ससम्मान ध्वजा स्थापित करने का विचार है जिसके लिए कई अखाड़े फिलहाल राजी हैं। बस सरकार पोल पर लगने वाले ध्वज के सम्मान में कोई कमी न रखे।

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