भगवान श्रीकृष्ण को कुल देवता बताने वाले समाजवादी पार्टी (सपा) के प्रमुख अखिलेश यादव कान्हा की नगरी में इस बार भी साइकिल नहीं दौड़ा पाए। इससे पहले उनके पिता मुलायम सिंह यादव के राज में भी यहां से कभी सपा जीत नहीं दर्ज कर सकी थी। फिर चाहे बात लोकसभा चुनाव की हो या विधानसभा की। इस बार सपा ने दो ही प्रत्याशी मैदान में उतारे थे। इनमें से भी एक की जमानत जब्त हो गई, दूसरे प्रत्याशी ने दम तो दिखाया लेकिन अंत में तीसरे स्थान पर संतोष करना पड़ा। चुनाव के लिहाज से मथुरा जिले को जाट बाहुल्य माना जाता है। यहां से समाजवादी पार्टी ने कभी भी जीत दर्ज नहीं की है। इसके चलते इस चुनाव में सपा मुखिया अखिलेश यादव ने जाट नेता जयंत चौधरी की पार्टी राष्ट्रीय लोक दल से गठबंधन किया था।सपा ने दो सीटों पर उतारे थे प्रत्याशी
उम्मीद जताई जा रही थी कि इस बार सपा भी जिले में दमखम दिखाएगी और अपने हार के रिकॉर्ड को तोड़ते हुए कम से कम एक सीट तो जीत दर्ज कर ही लेगी। सपा ने मथुरा विधानसभा से हाथरस की सादाबाद सीट से पूर्व विधायक देवेंद्र अग्रवाल पर दांव खेला तो पंडित श्याम सुंदर शर्मा के गढ़ मांट में जाट नेता संजय लाठर को प्रत्याशी बनाया थाअखिलेश ने मथुरा की दोनों ही विधानसभा में खूब जोर लगाया। अन्य तीनों सीटें गोवर्धन, छाता और बलदेव से रालोद के प्रत्याशी लड़े थे, लेकिन पांचों सीटों पर ही सपा रालोद गठबंधन को हार का ही सामना करना पड़ा।